सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग मानव को बीमार बना रहा है.

संदीप अपनी कुर्सी पर बैठ आज बड़ा खुश महसूस कर रहा था , और क्यों न हो, आज उसके फिजियोथेरेपी क्लिनिक का पहला दिन जो था ; उसकी इतने वर्षों की मेहनत आज रंग लाई  थी | घडी में जैसे ही ११ बजे, उसके क्लिनिक के बाहर एक कार रुकी, और उसमें से एक अधेड़ पुरुष निकल क्लिनिक में आए | संदीप ने उनका अभिवादन किया और पूछा “बताइए , मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?” | मरीज ने कहा “डॉ साहब, मेरे दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों में काफी दर्द रहता है, इसका कोई इलाज़ बताइए ” | संदीप ने पूछा  “आप काम क्या करते हैं?” | मरीज ने कहा ” जी, मेरा काफी बड़ा कारोबार है, और मैं दिन में १५-१६ घंटे मोबाइल पर ही बिताता हूँ, चाहे वो फेसबुक हो, इंस्टाग्राम हो, या ट्विटर हो” | संदीप के दिमाग में तुरनत एक बात कौंधी और उसने कहा ” सर, आपको कार्पल टनल सिंड्रोम नाम की बीमारी है , जिसमें कार्पल टनल के अंदर की मीडियन नर्व के आसपास के सीनोवियम टेंडन्स के सूज जाने से मीडियन नर्व पर काफी सारा जोर पड़ रहा है , और आपको काफी दर्द हो रहा है | यह आपके  बहुत अधिक टाइपिंग  से हो रहा है | ” मरीज ने कहा “लेकिन, डॉक्टर साहब, मैं टाइपिंग छोड़ भी तो नहीं सकता |” संदीप ने कहा “आप ऐसा कीजिए , बोल कर टाइप कीजिए , और ५ दिन बाद फिर आइए “| 

मरीज के जाने के बाद संदीप सोचने लगा कि सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल आदमी को किन तरीकों से प्रभावित करता है ; और तभी उसे अपना कानपुर वाला दोस्त रमेश याद आ गया जिसे फोन की ऐसी लत लग गई थी कि कभी भी पॉकेट टटोलता रहता था मोबाइल के लिए | संदीप ने गूगल पर इस बारे में थोड़ा खोजा तो उसे पता चला कि यह सही में एक बीमारी है जिसे “फैंटम रिंगिंग सिंड्रोम” कहते हैं, जिसमे हमारे दिमाग को हमेशा लगता है की हमारा फोन हमारी जेब में है |iDisorder  के लेखक डॉ लैरी रोसेन के अनुसार, इस बीमारी से ग्रस्त 70 प्रतिशत लोगों को जेब में वर्चुअल वाइब्रेशन का अनुभव होता है ।

संदीप ने थोड़ा और सोचा तो उसे अपने छोटे मामा  याद आए जिन्हें हमेशा चिंता होती रहती थी कि वे अपने मोबाइल से अलग ना हो जाएँ |मेडिकल डिक्शनरी में उसे इस बीमारी के लिए “नोमोफोबिया” शब्द मिला | आज की तारीख में लोग भले ही इस पर हँसते हैं लेकिन यह बीमारी इतनी विकराल हो गई है कि न्यूपोर्ट बीच, कैलिफोर्निया में मॉर्निंगसाइड रिकवरी सेंटर में एक समर्पित नोमोफोबिया उपचार कार्यक्रम के लिए प्रेरित किया है।

संदीप को अपने इनबॉक्स में पड़ी एक ईमेल याद आई जिसमें “साइबरसिकनेस” बीमारी का जिक्र था जिसमें  कतिपय डिजिटल एन्वायरन्मेंट्स का दैनंदिन व्यवहार करने से कई लोगों को सामान्य जीवन में भटकाव एवं बिखराव महसूस होता है |  आईफोन पर प्रयोग होने वाली आईओएस के नए संस्करण को  जैसे ही कुछ महीनों पहले  आईफोन और आईपैड उपयोगकर्ताओं के लिए खोला गया, एप्पल  के  ग्राहक समर्थक फ़ोरमों पर नए इंटरफ़ेस का उपयोग करने के बाद लोगों को भटकाव और मिचली महसूस करने वाली शिकायतों की बाढ़ सी आ गई ।  बड़े पैमाने पर एप्पल के पैरेलेक्स इफ़ेक्ट के अत्यधिक आकर्षक उपयोग को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिससे आइकन और होमस्क्रीन डिस्प्ले ग्लास के नीचे त्रिआयामी संसार के भीतर तैरते नज़र आते  हैं ।

संदीप के छोटे भाई को ऑनलाइन गेम खेलना बहुत पसंद है, , सो संदीप ने इसके दुष्प्रभावों को खोज उनके बारे में पढ़ना शुरू किया | उसे एक आलेख मिला जिसमें लिखा था कि दक्षिण कोरियाई सरकार द्वारा कराए गए  एक अध्ययन के अनुसार, 9 और 39 वर्ष की आयु के बीच की लगभग8 प्रतिशत आबादी या तो इंटरनेट या ऑनलाइन गेमिंग की लत से पीड़ित है , इसलिए दक्षिण कोरिया  ने एक तथाकथित “सिंड्रेला कानून”  लागू किया है, जो 16 साल से कम उम्र के उपयोगकर्ताओं के लिए आधी रात और सुबह 6 बजे के बीच ऑनलाइन गेम तक पहुंच में कटौती करता है। कुछ ऐसा ही जुनून विश्व में पबजी गेम हेतु देखने मिल रहा है, जिससे त्रस्त  हो कर  विश्व ने इसको बनाने वाली कंपनी पर ऐसा दबाव बनाया कि कंपनी को १३ वर्ष से कम उम्र वालों के लिए लगातार गेम खेलने की अवधि को ६ घंटों  पर प्रतिबंधित करना पड़ा | 

संदीप को अपनी मौसी याद आईं जो हर दुसरे दिन एक बीमारी ले कर बैठ जाती थीं , की उन्हें यही बीमारी है क्योंकि उन्होंने इसके बारे में अभी अभी इंटरनेट पर पढ़ा है ; सो संदीप ने सोचा क्या यह मनोवैज्ञानिक बीमारी सब को होती है ; और उसे माइक्रोसॉफ्ट  का एक २००८ का पेपर मिला जिसमें  इसे “साइबरकॉन्ड्रिया” का नाम दिया गया है और उस पेपर के अनुसार  हम इंटरनेट पर काफ़ी सारी बीमारियों  के बारे में पढ़ते हैं , और कई बार इन बीमारियों के बारे में पढ़ते पढ़ते हमें यह विश्वास  हो जाता है कि यह बीमारी मुझे है, और फिर हम वहम के शिकार हो जाते हैं , जिसका इलाज तो हक़ीम लुक़मान के पास भी नहीं था | 

संदीप के पास तभी मधु का मैसेज आया कि वह आजकल काफी थका थका महसूस कर रही है इसलिए वह केवल मोबाइल के साथ समय बिताती है | संदीप ने एक मेडिकल फोरम पर ये लक्षण पोस्ट किये तो उसे पता चला कि मोबाइल को  चेहरे से नजदीक रखना मेलाटोनिन हॉर्मोन के स्राव को रोकता है जिससे हम हमेशा थका थका महसूस करते हैं  एक और बात संदीप को पता चली  कि स्क्रीन-टाइम हमारी आंखों के लिए बहुत निकट,स्थिर फोकल लंबाई बनाता है। आंख में सिलिअरी मांसपेशियों को आराम मिलता है जब दूर दृष्टि लगी होती है, और यह छोटी फोकल लंबाई में सिकुड़ती है। स्क्रीन पर घंटों तक टकटकी लगाना सिलिअरी मांसपेशी के निरंतर संकुचन को प्रभावित करता है एवं मायोपिया का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है ।  

संदीप ने सोचा कि सोशल मीडिया के चलते इतने सारे लोग इतनी देर तक बैठे रहते हैं क्या उनपर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता? थोड़ा खंगालते ही उसे एक पेपर मिला जिसमे साफ़ साफ़ लिखा था कि ज्यादा देर तक बैठे रहना हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से होने वाले  इन्सुलिन एवं ग्लूकोस के स्राव को धीमा कर देता है जिससे कालांतर में डायबिटीज एवं कैंसर जैसी बीमारियाँ उभर कर सामने आती हैं | वैस्क्युलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर नामक प्रोटीन का स्राव शरीर के जड़ हिस्सों में अपने आप कम हो जाता है और यह रिसाव जितना कम होता है , शरीर उतना ही कुपोषित होता चला जाता है | 

संदीप को अब गूगल और ईमेल  की महत्ता समझ में आ रही थी, उसने तभी सोचा कि सबसे बढ़िया सॉफ्टवेयर तो इसका मतलब इंस्टाग्राम ही है ,बस फोटो डालते रहो , लाइक करते रहो , सो उसने इंस्टाग्राम के बारे में थोड़ा पढ़ना चाहा और उसे पता चला कि प्रतिदिन इंस्टाग्राम पर ९.५  करोड़ फोटो शेयर किये जाते हैं, और इनसे उपजता है अवसाद, दूसरों की फोटो देख जन्मती हीन भावना एवं फिटस्पिरेशन तस्वीरों से जन्मता अपराध बोध हमें अवसाद के दुष्चक्र में डाल देता है और एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसी कई बीमारियाँ हमें अपने चंगुल में जकड़ लेती हैं | 

 संदीप को तभी फेसबुक पर परमिंदर ने पिंग किया |परमिंदर अपने आप में संदीप की मित्रमडली का फेसबुक था , पूरे दिन फेसबुक फेसबुक और कुछ नहीं| संदीप ने उत्सुकतावश फेसबुक का अत्यधिक प्रयोग सर्च किया तो उसे पता चला कि  परमिंदर को “फेसबुक सिंड्रोम” है , जिसमें वो केवल फेसबुक के बारे में ही सोचता रहता है , और असंयमित हो जाता है यदि वो कुछ देर फेसबुक न करे | परमिंदर अक्सर कहता रहता था कि फेसबुक उसके लिए पढाई के तनाव को दूर करने का माध्यम है , और संदीप ने पढ़ा कि वस्तुतः यह फेसबुक सिंड्रोम का एक प्रमुख लक्षण है | 

संदीप कम्प्यूटर बंद कर ही रहा था कि उसके फ़िज़ियोथेरेपिस्ट ग्रुप के आज के बुलेटिन पर उसकी नजर पड़ी , जिसमे “टेक्स्ट नेक” नामक बीमारी का जिक्र था | संदीप ने जब उस मेल को पढ़ा तो उसे पता चला कि कंप्यूटर/मोबाइल पर लगातार झुके झुके गर्दन के प्राकृतिक झुकाव में ३६० डिग्री परिवर्तन आ जाता है जिससे स्पाइनल आर्थराइटिस की संभावना काफी बढ़ जाती है, फेफड़ों के शक्ति करीब ३०% घट जाती है, लगातार सरदर्द होता रहता है जो धीरे धीरे माइग्रेन का रूप ले लेता है और कई बार तो डिस्क तक  डिस्लोकेट हो जाती है  |  

संदीप ने  कंप्यूटर बंद किया , मोबाइल ऑफ किया और सोशल मीडिया के तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए घर की ओर बढ़ चला | 

  आभार- सत्यदीप कुमार (कादंबिनी में छपे लेख पर आधारित-सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग मानव को बीमार बना रहा है)

    By Anurag

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