
जितेन्द्र की कलम से…
धन दौलत की चाह नहीं थी किंतु भूख अकुलाई थी, क्षुधा मिटाने की खातिर अपने बच्चे संग आई थी
उसे आस थी मानुष पर जो भोजन का भंडार रहा, यही सोच कर अनानास को देख-देख ललचाई थी
तनिक नहीं अंदेशा उसको अब क्या होने वाला है, जिसको भोजन समझा उसमे मानव की कुटिलाई थी
गर्भवती हथिनी ने जैसे अनानास खाया होगा, हुआ धमाका मुंह में सारा जिस्म थर्राया होगा
हाय कलेजा बच्चे की खातिर मुंह को आया होगा, खून से लथपथ मां को कोई राह सुझाया ना होगा
जान बचाने की खातिर वह तभी नदी में आई थी, तीन दिवस थी खड़ी मौत से जमकर जंग लड़ाई थी
जब तक जान बची थी तब तक किया खूब प्रयास रहा, किन्तु मौत से हार गयी बच्चे संग जान गवाई थी
कहते हैं सब उस प्रदेश में शिक्षा सबने पाई है, लानत है ऐसी शिक्षा पर ऐसी आमनुषायी पर
ऐसे घृणित कृत्य पर प्रभु तुमसे दुहाई है, प्रलय करो ऐसे लोगों पर जिसने उसे खिलाई है
कैसे उनको मानव कह दूं जिसने ऐसा कृत्य किया, कुछ ऐसे लोगों से सारी मानवता शर्मायी थी।।