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Durga Puja-Kolkata-दुर्गा पूजा या नवरात्रि का नाम आते ही कोलकाता की दुर्गा पूजा का भव्य नजारा आँखों में उतर आता है, वहां के भव्य पंडाल, पूजा की पवित्रता, दुर्गा मूर्तियों के तेजस्वी चेहरे, सिन्दूर खेला और इसके अलावा भी बहुत कुछ जिसकी भव्यता और सौंदर्यता को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है. बंगाली हिन्दुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई महोत्सव नहीं है. पूरे नवरात्री के दौरान पूरा पश्चिम बंगाल दुर्गामयी नजर आता है.
दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है। वैसे तो पूरे भारत में दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन यह कोलकाता में बहुत बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। यह देवी दुर्गा के सम्मान में नवरात्रि में भव्य तरीके से मनाया जाता है। छठे दिन से नौवें दिन तक भव्यता से बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा आयोजित की जाती है। दुर्गा पंडाल नौवें दिन तक दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं और विसर्जन दसवें दिन होता है। दुर्गा प्रतिमा को दसवें दिन भव्य उत्सव और जुलूस के साथ विसर्जित किया जाता है।
कोलकाता का दुर्गा पूजा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। कोलकाता के दुर्गा पूजा को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। इसमें तीर्थयात्री और पर्यटक दोनों शामिल होते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता की सुंदरता अलग ही होती है। कोलकाता के रीति-रिवाज, संस्कृति, तौर-तरीके, माँ की भक्ति, उनमें आस्था दुर्गा पूजा के लिए एक अलग माहौल बनाती है। दुर्गा पूजा का यह भव्य आयोजन बंगाल की सुंदर संस्कृति को दर्शाता है।
कोलकाता दुर्गा पूजा के दौरान, वहाँ लोगों की आमद दिन-रात होती है। भारतीय और विदेशी लोग वहां दर्शन के लिए आते हैं। कोलकाता में उस समय यातायात नियंत्रण के लिए कई मार्ग बंद हो जाते हैं और वहां गाड़ी जाने की अनुमति नहीं होती है.
यहाँ के लोग साल भर “माँ” के आने का इंतज़ार करते हैं और नवरात्रि के आगमन से पहले बहुत बड़े पैमाने पर तैयारियाँ की जाती हैं। नवरात्रि के 6 दिन माँ की पूजा की जाती है जिसमे महापंचमी, महाशोष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और दशमी है जिसे विजयदशमी कहा जाता है.
पितृ पक्ष की समाप्ति के बाद देवी पक्ष शुरू होता है, उस दिन को “महालया” कहा जाता है। महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है. इसी दिन ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने देवी दुर्गा का सृजन किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार महालया के दिन ही दुर्गा माँ कैलाश पर्वत से धरती पर आयी थी. पूरे साल लोग इस दिन का इंतज़ार करते हैं. महालया वैसे तो बंगाली लोगों का त्यौहार है लेकिन अब ये पूरे भारत के लोग मनाते हैं. नवरात्रि के आगमन से पहले दुर्गा की मूर्ति को रंगना शुरू कर दिया जाता है और “आंखों” को छोड़कर बाकी काम पूरे किए जाते हैं। महालया के दिन देवी दुर्गा को पूरे अनुष्ठानों के साथ पृथ्वी पर आमंत्रित किया जाता है और दुर्गा मूर्ति की आंखों को चित्रित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महालया के दिन माँ की आंखों को आकार देने के समय “माँ” पृथ्वी पर उतरती हैं।
पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, चार चीजें हैं जो दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियों के निर्माण में जाती हैं – गंगा नदी से मिट्टी, गोबर, गोमूत्र और निशिधो पालियों या निषिद्ध प्रदेशों से मिट्टी।
इस मिट्टी को पुण्या माटी के नाम से जाना जाता है और यह वेश्याओं के घरों से आती है। हालांकि इस परंपरा की शुरुआत कब से हुई या क्यों हुई इसका कारण अज्ञात है अभी तक.
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पंचमी, गणेश जी और उनकी पत्नी (Kola Bou) की पूजा करके पूजा शुरू होती है, जिसे “Bodhon” कहा जाता है। यह मूर्ति में देवी की उपस्थिति का आह्वान करने की रस्म है। सुबह-सुबह, एक छोटा केले का पौधा जिसे Kola Bou कहा जाता है, नदी में स्नान करने के लिए ले जाया जाता है। और उस दिन “लाल पर” वाली साड़ी पहनी जाती है। इसके बाद भव्य अनुष्ठान और पूजा अर्चना की जाती है। लोग विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
नवरात्रि के छठे दिन यानि कोलकाता में दुर्गा पूजा महोत्सव के पहले दिन दुर्गा मूर्तियों को घर में लाया जाता है या उन्हें भव्य रूप से सजाए गए पंडाल में ले जाया जाता है। फिर दुर्गा मूर्ति को फल, फूल, कपड़े, आभूषण और लाल सिंदूर से सजाया जाता है और उनके सामने कई प्रकार की मिठाइयाँ रखी जाती हैं।
महा-अष्टमी संध्या आरती बहुत प्रसिद्ध है. इसमें दिया की सजावट बहुत होती है और आराधना भी काफी लम्बे समय तक की जाती है. Sandhi पूजा, महा-अष्टमी दुर्गा पूजा का ही एक हिस्सा होता है. इसमें 108 दिया और कमल के फूल का उपयोग होता है.
दुर्गा का अर्थ है “अजेय”. महानवमी के बाद महादशमी आती है। इस दिन ये माना जाता है की माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव को मार कर पृथ्वी को संतुलित किया था. महिषासुर को ऐसा वरदान प्राप्त था कि कोई भी मानव या देवता उसे नहीं मार सकता था। दुर्गा माँ का यह रूप कोलकाता में बहुत पूज्यनीय है।
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दुर्गा पूजा के दसवें दिन को दशमी कहा जाता है और इस दिन देवी दुर्गा ने राक्षस पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए इसे विजयदशमी भी कहा जाता है। इस दिन कई लोग जुलूस में इकट्ठा होते हैं और दुर्गा प्रतिमा को विसर्जन के लिए नाचते-गाते हुए ले जाते हैं। देवी को उस दिन वापस लौटना होता है। महिलाएं, विशेष रूप से विवाहित महिलाएं, पहले देवी दुर्गा पर लाल सिंदूर लगाती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, और सिन्दूर खेला की रस्म पूरा करती हैं. इसे विवाह और प्रजनन का प्रतीक माना जाता है। दुर्गा माँ को अगले वर्ष आने का निमंत्रण देने के बाद उन्हें विसर्जित दिया जाता है। माँ के जाने से सभी का मन बहुत दुखी होता है। इस भारी मन के साथ हर कोई “सुवो विजया” की कामना करता है। जो छोटे होते हैं वे अपने से बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं, बाकी एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई देते हैं।
हालाँकि सभी पंडालों का अपना एक अलग theme होता है, लेकिन पिछले कई वर्षों से पंडाल में समाज को जागरूक करने वाले theme भी देखे जा सकते है. कोलकाता में दुर्गा पूजा बहुत उत्साह और जोश के साथ असाधारण तरीके से मनाया जाता है और इसमें जीवंत रंग भरते हैं यहाँ के चमकते पंडाल जो की हजार से ज्यादा की संख्या में होते हैं. यहाँ के पंडाल देवी दुर्गा के अनेक रूप को दिखाते हैं. रंग-बिरंगे पंडाल, अपने पारम्परिक परिधान में सजे लोग और जीवंत बाजार, कोलकाता की मिठाईयां यहाँ दुर्गामहोत्सव के दौरान पूरे शहर में एक जीवित रंग भर देती हैं.
बागबाजार, कॉलेज स्क्वायर, मोहम्मद अली पार्क, संतोष मित्रा स्क्वायर, बादामतला अशर संघ, सुरूचि संघ, एकदलिया एवरग्रीन, बोस पुकार शीतला मंदिर, जोधपुर पार्क.
भोग (प्रसाद) कोलकाता दुर्गा पूजा की एक प्रमुख विशेषता है. दुर्गा पूजा के दौरान अगर हम कोलकाता को “भोजनालय का स्वर्ग” कहें तो गलत नहीं होगा। प्रत्येक पंडाल में भोजन की समुचित व्यवस्था होती है. यहाँ पर आप बंगाली भोज के अलावा और भी कई प्रांतो के व्यंजनों का लुफ्त उठा सकते हैं.
पूरे पश्चिम बंगाल के लोग पूरे साल “माँ” के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. नवरात्रि आने के काफी पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं, पूरे नवरात्री वो पूरे जोश के साथ दुर्गा माँ की पूजा करते हैं, धार्मिक-अनुष्ठान करते हैं, एक-दूसरे को उपहार देते हैं, नए कपडे पहनते हैं, अच्छे-अच्छे व्यंजन का भोग लगाते हैं लेकिन विजयादशमी के दिन “माँ” के वापस जाने से सबकी आँखे नम हो जाती हैं. विसर्जन के समय सबकी आँखों में आंसू आ जाते हैं. “माँ” के प्रति प्रेम, “माँ” के प्रति ममता “माँ” को जाने नहीं देना चाहते, “माँ” से बिछड़ना नहीं चाहता कोई, माँ को अपनी आँखों से दूर कोई नहीं देखना चाहता, क्योंकि एक माँ ही होती है तो अपने “लाल” को निःस्वार्थ भाव से पालती है, माँ ही होती है जो जिसको बदले में कुछ नहीं चाहिए होता है. सबको पता है की अब पूरे एक साल का इंतज़ार हो जायेगा दोबारा माँ को आने में. ये इंतज़ार बहुत लम्बा होता है, माँ से एक मिनट की दूरी भी सदियों से भी बड़ी होती है ये तो 365 दिन है. हम माँ से प्रार्थना करते हैं की अगले बरस “माँ” जल्दी आओ इसी भावना के साथ “माँ” को सद्भाव से ओत-प्रोत विदाई करते हैं.
जय माता दी
भाई दुर्गा पूजा पूरे देश में धूम धाम से मनाया जाता है किन्तु बंगाल से इसकी शुरुआत हुआ है इस लिये वहां की छटा देखते ही बनती है अद्भुत व्यवस्था होती है माँ के दर्शन की। आपने वहां का इतना जीवन्त ज्ञान दे कर हमे कृतार्थ कर दिया । आपको कोटि कोटि धन्यवाद
Thanks Bro…
Aadbhut ..bhut sundar pictures and words …durgapuja is full of excitement n energy….Thank u …to share your experiences 😊
Thank You…