Abode of my thoughts
Hello Readers…
कैसे हैं आप लोग? बहुत दिनों से व्यस्तता के कारण कुछ लिख नहीं पाया उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ. पर जब कुछ लोगों ने, ख़ास कर के “शीनू मैडम” ने पूछा मेरे गायब 😁😁😁 होने के बारें में तो मुझे अच्छा लगा ये जान कर की मैडम आप भी मेरा लिखा आर्टिकल पढ़ती हैं ये मेरे लिए बहुत ही गौरव की बात है. और आप सभी लोगों से ये दरख़्वास्त है की ऐसे ही प्यार और आशीर्वाद बना के रखिये।
मित्रों आज हम बात करते हैं भारतवर्ष के पवित्र रंगो के त्यौहार होली की. कुछ दिनों में होली आने वाली भी है और मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार है. वैसे तो सभी त्योहारों का अपना एक अलग महत्व होता है. सभी त्यौहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है, आपसी मेलजोल, प्रेम–सौहार्द को बढ़ावा देते है लेकिन होली का अपना एक अलग उल्लास होता है मेरे मन में, और मेरी ये हमेशा कोशिश रहती है की पूरे साल जीविकोपार्जन के लिए दुनिया के किसी भी कोने में रहूँ लेकिन होली का त्यौहार अपने मातृ–भूमि पर अपने परिवार और बचपन के मित्रों के साथ मनाऊं।
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
होली को वसंत का त्यौहार, रंगों का त्यौहार और प्रेम का त्यौहार भी कहा जाता है. भारत में ये त्यौहार प्रमुखता से मनाया जाता है लेकिन अब धीरे–धीरे ये Asia और पश्चिमी देशों में भी कुछ जगह मनाया जाने लगा है. इसमें अप्रवासी भारतवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है.
होली वसंत ऋतु के आगमन, सर्दियों के जाने का, हंसने–खेलने का और रूठें–टूटे हुए रिश्तों को मनाने और जोड़ने का त्यौहार है. होली का त्यौहार दो दिन का होता है पहले दिन शाम को या रात में होलिका दहन होता है मतलब होलिका जलाई जाती है और दूसरे दिन रंग, अबीर, गुलाल एक दूसरे को लगा कर होली का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन को धुलेटी, धुरखेल, धूलिवंदन या धुलंडी भी कहते हैं.
होलिका दहन के समय से ही होली का जश्न शुरू हो जाता है, जहाँ पर होलिका दहन समारोह होता है वहां लोग इकठ्ठा होते हैं, अलाव के समक्ष अनुष्ठान करते हैं. भगवान से प्रार्थना करते हैं की हमारी आंतरिक और सामाजिक बुराइयों को नष्ट करें जिस तरह से होलिकादहन में भक्त प्रह्लाद की जान स्वयं प्रभु में बचा ली थी और होलिका जल कर ख़त्म हो गयी थी.
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हिरण्यकश्यप (एक असुर) का पुत्र प्रहलाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप एक असुर था और उसका भगवान से पुराना बैर था, उसने खुद को ही भगवान कहलवाना शुरू कर दिया था और उसको ये बात बिलकुल पसंद नहीं थी की एक असुरपुत्र होने के कारण प्रह्लाद भगवान की भक्ति करे. अतः हिरण्यकश्यप ने खुद कई बार अपने पुत्र को मारने की चेष्टा की लेकिन प्रह्लाद की रक्षा स्वयं भगवान कर रहे थे तो वो बार–बार असफल हो जाता था.
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसको भगवान से वरदान स्वरुप एक चादर मिली थी जिसको ओढ़ने से अग्नि उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती थी. होलिका वो चादर ओढ़ के अग्नि में बैठ गयी और प्रह्लाद को गोद में ले लिया लेकिन भगवान की महिमा से वो चादर उड़ कर प्रह्लाद के ऊपर चली गयी और होलिका अग्नि में भस्म हो गयी.
तब से होलिका दहन के दिन होली जला कर बुराई का अंत और भगवान द्वारा अपने भक्त की रक्षा करने का जश्न मनाया जाता है.
और मेरी आप सभी लोगों से विनती है की होलिका दहन के समय ही आप अपने अंदर के नकारात्मक विचारों का दहन कर दे और एक सकारात्मक सोच के साथ अपने होली के त्यौहार की शुरुआत करें.
होली के दिन लोग पूरे हर्षों–उल्लास से लबरेज होते हैं और सुबह से ही एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलाल से सरोबार कर देते हैं. आपस में गले मिलते हैं, एक–दूसरे को बधाई देते हैं. पुराने गीले–शिकवे भूल कर एक दूसरे को अपने गले लगा लेते हैं. छोटे–बड़े, बुजुर्ग, आदमी–औरत सभी लोग होली के रंगो का भरपूर आनंद लेते हैं. एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं. होली खेलते समय लोग होली के गीतों का भी आनंद लेते हैं, नृत्य करते हुए रंग नहलाते हैं.
शाम के समय नए कपडे पहन कर लोगों से मिलते हैं बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं. गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है.
राग–रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग–बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग–बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़–पौधे, पशु–पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे–बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक–झाँझ–मंजीरों की धुन के साथ नृत्य–संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
होली में हुड़दंग करना, जबरदस्ती रंग लगाना, केमिकल रंगो का प्रयोग करना, नशा करना या जानवरों पर रंग फेकना ये सब होली का असली स्वरुप नहीं है.
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कुछ लोगों को होली, नशा करने का एक सुनहरा अवसर लगता है. ये ऐसा सोचते हैं की होली के दिन मुझे पूरा छूट है चाहे जैसा और जितना नशा कर सकता हूँ. लेकिन ये सरासर गलत है नशा कभी भी किसी भी समय सही नहीं हो सकता है. ये किसी भी Situation में नुकसान ही करेगा। और इनको होली का आनंद नहीं लेना होता इनको तो नशे में डूबना होता है. ये खुद तो नशा करके कही सड़क पर या नाली में पड़े होते हैं और जो इनके साथ होते हैं उसको भी परेशान करते हैं, बशर्ते वो नशा न किया हो अगर उसने भी भागीदारी दिखाई है तब तो उनसे बड़ा आज भगवान भी नहीं है, क्योंकि नशे में होने के बाद आदमी अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता है.
कुछ लोग इतने पक्के रंगों का प्रयोग करते हैं की जिसको छुड़ाने में जान निकल जाती है, स्किन फट जाएगी लेकिन वो पक्का रंग नहीं निकलेगा। और अगर उस रंग में थोड़ी सी मात्रा भी खतरनाक रसायन की है तब तो skin diseases होना पक्का है.
हम में से बहुत से लोगों को पानी वाले रंगों से allergy होती है वो ऐसे रंग से दूर रहना चाहते हैं लेकिन कुछ हुडदंगी ऐसे लोगों को बलपूर्वक पानी वाले पक्के रंग लगा के अपने आपको बहुत सफल मानते हैं. ऐसे लोगों के साथ आप अबीर या गुलाल लगा कर होली खेल सकते हैं.उनको भी अच्छा लगेगा और आप उनके साथ होली भी खेल सकेंगे
जानवरों पर रंग नहीं डालना चाहिए। किसी भी प्रकार का रंग चाहे सूखा हो या गीला, जानवरों को नुकसान करता है. उनके शरीर पर रंग डालने से वो उनको चाट कर साफ़ करते हैं जिससे केमिकल उनके शरीर के अंदर चला जाता है जो रंग में पड़ा होता है और अनेक प्रकार की तकलीफ उनको होती है. बेज़ुबान जानवर अपनी व्यथा कह नहीं सकता इसलिए उनपर रहम करें ये मेरी व्यक्तिगत प्रार्थना है सभी लोगों से.
होली का त्यौहार सभी धर्मों के लोग मनाते हैं चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, प्राचीन–काल के बहुत से ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है की मुग़ल शासन में भी होली का त्यौहार बहुत से मुग़ल शासक मनाते थे लेकिन आज जबरदस्ती या हुड़दंग में किसी को जबरदस्ती रंग लगा कर आपसी सौहार्द न ख़राब करें। जिसको अच्छा लगे उसके साथ ही रंग खेले चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम। सामने वाले को क्या समस्या है आपको पता नहीं है या उसको पसंद नहीं है तो बिलकुल ऐसा न करें। प्रेम के त्यौहार को प्रेम से ही मनाये। सभी का सम्मान करते हुए.